पिछले कुछ वक़्त से बंगाल में एक कैंपेन चल रहा है। इसको चलाने वाला संगठन कह रहा है कि विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, सो मछली ईश्वर का रूप है। मछली में विष्णु निवास करते हैं, सो मछली भी ईश्वर है। इसीलिए मछली खाना भगवान को खाने जैसा है। इस हिसाब से दुनियाभर में आजतक लोग करोड़ों टन भगवान खा चुके हैं। तल कर, रोस्ट-स्टीम करके, मसालों के साथ ग्रेवी में और कई बार तो कच्ची ही!यह एक क्रांतिकारी जानकारी है। भक्ति के हिसाब से तो ये मतलब मिसाल ही है। किताबों और मंदिरों के निर्जीव प्रभु से आगे बढ़कर ईश्वर एक साक्षात-tangible रूप में भक्तों के सामने उपस्थित हैं। कि लो, देखो मुझे… महसूस करो। मैं काल्पनिक नहीं, वास्तविक हूं।
भक्त केवल भगवान की पूजा ही नहीं कर रहा, भगवान को खा भी रहा है। इसमें ईश्वर की रज़ामंदी भी होगी ही। आख़िरकार जिस ईश्वर की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, उसकी इच्छा के बिना कोई उसे खा कैसे सकता है। भक्त की थाली में भगवान की कमी न होने पाए, इसके लिए नदी, तालाब और पोखरों में भगवान पाले जा रहे हैं। भगवान की जितनी मांग बढ़ती है, उतनी सप्लाइ भी सुनिश्चित होती है। भगवान की आपूर्ति में लाखों लोग जुटे हुए हैं। इस प्रकटीकरण से एक पुराना विवाद भी सुलझ गया है। यह साबित हो गया है कि हिंदू धर्म वास्तव में सब धर्मों से श्रेष्ठ है। किसी और धर्म का ईश्वर क्या इतना उदार हो सकेगा कि अपने भक्तों का भोजन बने?जय हिंदू, जय सनातन। गर्व से कहो हम हिंदू है!
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-Swati Mishra
(डिस्क्लेमर- यह स्वाती मिश्रा के निजी विचार है उन्होंने फेसबुक पर शेयर किये है, सोशल डायरी का कोई सरोकार नहीं)
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