इराकी सेना का बड़ा कारनामा- आईएस के आतंक का अंत : मोसुल की सुरंग में मिलीं कनाडा और जर्मनी की लड़कियां. इराकी सेना को मोसुल की एक गुप्त सुरंग में बीस महिलाएं और लड़कियां मिली हैं। इनमें से दो कनाडा और पांच जर्मनी की हैं। यह सभी महिलाएं आतंकी संगठन आईएस की महिला लड़ाका टुकड़ी का हिस्सा थीं। सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है। इराकी सेना के मुताबिक इन लड़कियों में से पांच जर्मनी, तीन रूस, तीन तुर्की, दो कनाडा, एक चेचेन्या और छह लीबिया-सीरिया की हैं।
जर्मनी से भागी 16 साल की लड़की भी मिली
आतंकी संगठन में शामिल होने के भागी 16 साल की जर्मन लड़की भी मोसुल में जिंदा मिली है। इराकी पुलिस ने लिंडा डब्ल्यू नाम की इस किशोरी को गिरफ्तार कर लिया है। जर्मनी के सैक्सोनी राज्य से यह लड़की पिछले साल जुलाई से लापता हो गई थी। लिंडा ड्रेस्डन शहर के पास मौजूद कस्बे पल्सनिट्ज की रहने वाली है। जर्मनी से भागने के बाद उसकी अंतिम लोकेशन इस्तांबुल में मिली थी। इसके बाद से उसका कोई पता नहीं था।
जर्मनी से भागी 16 साल की लड़की भी मिली
आतंकी संगठन में शामिल होने के भागी 16 साल की जर्मन लड़की भी मोसुल में जिंदा मिली है। इराकी पुलिस ने लिंडा डब्ल्यू नाम की इस किशोरी को गिरफ्तार कर लिया है। जर्मनी के सैक्सोनी राज्य से यह लड़की पिछले साल जुलाई से लापता हो गई थी। लिंडा ड्रेस्डन शहर के पास मौजूद कस्बे पल्सनिट्ज की रहने वाली है। जर्मनी से भागने के बाद उसकी अंतिम लोकेशन इस्तांबुल में मिली थी। इसके बाद से उसका कोई पता नहीं था।
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जर्मनी के एक पत्रकार ने कहा कि पकड़ी गई लड़की की नई तस्वीर से लिंडा की शक्ल पूरी तरह मिलती है। जैसे ही पुलिस ने लड़की को गिरफ्तार किया। उसकी तस्वीर पूरी दुनिया में सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी।
कम उम्र की लड़कियों को बरगलाते थे आतंकी
कट्टरपंथी के शिकार लोगों की मदद करने वाली संस्था हयात कनाडा की निदेशक ऐलेक्जेंड्रा बेन के मुताबिक आतंकी हमेशा बीस साल से कम उम्र की लड़कियों को चुनते थे। ताकि सोशल मीडिया आदि के जरिए इन्हें बरगलाया जा सके। इस उम्र में इतनी सोचने समझने की क्षमता नहीं होती है। इसलिए लड़कियां आसानी से आतंकियों के बहकाने में आ जाती थीं। अब ये महिलाएं अपने घर लौटना चाहती हैं या फिर वे पकड़ी जा रही हैं।
आत्मघाती हमलावर बना देते थे इन्हें
आईएस इन विदेशी महिलाओं का इस्तेमाल आत्मघाती हमलावर के रूप में करता था। कई महिलाओं को मोसुल की नौ माह चली जंग के दौरान लड़ाकों की अग्रिम पंक्ति में तैनात किया गया था। इस महीने की शुरुआत में एक वीडियो फुटेज सामने आया था, जिसमें दो सैनिकों को मारने के लिए एक महिला ने खुद को बम से उड़ा लिया था। इस महिला की गोद में एक बच्चा भी था।
#iraqi #ISIS
— shiaqaum (@Shiaqaumnews) July 19, 2017
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कट्टरपंथी के शिकार लोगों की मदद करने वाली संस्था हयात कनाडा की निदेशक ऐलेक्जेंड्रा बेन के मुताबिक आतंकी हमेशा बीस साल से कम उम्र की लड़कियों को चुनते थे। ताकि सोशल मीडिया आदि के जरिए इन्हें बरगलाया जा सके। इस उम्र में इतनी सोचने समझने की क्षमता नहीं होती है। इसलिए लड़कियां आसानी से आतंकियों के बहकाने में आ जाती थीं। अब ये महिलाएं अपने घर लौटना चाहती हैं या फिर वे पकड़ी जा रही हैं।
आत्मघाती हमलावर बना देते थे इन्हें
आईएस इन विदेशी महिलाओं का इस्तेमाल आत्मघाती हमलावर के रूप में करता था। कई महिलाओं को मोसुल की नौ माह चली जंग के दौरान लड़ाकों की अग्रिम पंक्ति में तैनात किया गया था। इस महीने की शुरुआत में एक वीडियो फुटेज सामने आया था, जिसमें दो सैनिकों को मारने के लिए एक महिला ने खुद को बम से उड़ा लिया था। इस महिला की गोद में एक बच्चा भी था।
माता-पिता पूछ रहे, कैसे हैं उनके बच्चे
बताया जा रहा है कि इन लड़कियों के पकड़े जाते ही उनके माता-पिता अपने-अपने देशों के दूतावासों में फोन करके अपने बच्चों का हाल जानने की कोशिश कर रहे हैं। आईएस में शामिल होने के लिए 27 हजार विदेशी सीरिया पहुंचे थे। ऐसे में दस जुलाई को मोसुल के आजाद होते ही दूतावासों में आने वाले फोन की संख्या कई गुना बढ़ गई है। लोग जानना चाहते हैं कि उनके बच्चे कहां हैं। ज्यादातर लोगों को तो उम्मीद ही नहीं थी कि उनके बच्चे जिंदा भी हो सकते हैं।
वे लोग किस्मत वाले हैं, जिनके बच्चे पकड़े जा रहे हैं। वरना ज्यादातर लोग तो मारे जा चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में अब भी 200 से ज्यादा कनाडाई नागरिक मौजूद हैं।
बताया जा रहा है कि इन लड़कियों के पकड़े जाते ही उनके माता-पिता अपने-अपने देशों के दूतावासों में फोन करके अपने बच्चों का हाल जानने की कोशिश कर रहे हैं। आईएस में शामिल होने के लिए 27 हजार विदेशी सीरिया पहुंचे थे। ऐसे में दस जुलाई को मोसुल के आजाद होते ही दूतावासों में आने वाले फोन की संख्या कई गुना बढ़ गई है। लोग जानना चाहते हैं कि उनके बच्चे कहां हैं। ज्यादातर लोगों को तो उम्मीद ही नहीं थी कि उनके बच्चे जिंदा भी हो सकते हैं।
वे लोग किस्मत वाले हैं, जिनके बच्चे पकड़े जा रहे हैं। वरना ज्यादातर लोग तो मारे जा चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में अब भी 200 से ज्यादा कनाडाई नागरिक मौजूद हैं।
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