फाइल फोटो |
गुजरात में मुसलमानो के हुए नरसंहार के समय शहर के अलग अलग जगहों से विस्फोटक बम बरामद हुए थे, जिसका इलज़ाम ज़बरदस्ती मुसलमानो के सर पर थोप दिया गया। जमीअत उलमा-ए-हिन्द की कोशिशों ने पन्द्रह साल से जेल में बंद चार मुसलमानो को बा इज़्ज़त बरी कराया। हमेशा की तरह इस बार भी करीब पन्द्रह साल बाद कोर्ट ने बताया आप बेक़सूर हैं। पुलिस को आपके खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिले। भारत में पल रहे मुसलमानो का भविष्य यही है जब वोह पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहते हैं तो उन्हें आतंकवाद का ठप्पा लगाकर पूरी ज़िन्दगी जेल में सड़ा दिया जाता है जब उनकी ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव शुरू होता है निर्दोष बोलकर घुट-घुट कर जीने के लिए छोड़ दिया जाता है।
इतना सब कुछ होजाने के बाद भी मुसलमान आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें कट्टरपंथी बोलकर खामोश करा दिया जाता है। क़रीब जमीअत-उलमा हिन्द और अन्य संघटनो की कोशिशों से क़रीब सैंकड़ों मुसलमानो को रिहा कराया जिनके ऊपर उस वक़्त आतंकवाद का ठप्पा लगा दिया गया था जब वोह पढ़ लिख कर कुछ बनने जा रहे थे। ज़बरदस्ती पुलिस उन्हें टॉर्चर करके क़बूल करवाती है जिसके खुले प्रमाण मौलाना मंसूरी जिन्होंने अपनी किताब 'ग्यारह साल सलाखों के पीछे' में पुलिस और सरकार का मकरूह चेहरा दिखाया है। किस तरह पुलिस उनपर ज़ुल्म ढाती है क़रीब ग्यारह साल बाद मौलाना को भी निर्दोष कहते हुए बरी कर दिया गया।
लोकतंत्र के नाम पर मुसलमानो का चुप रहना घातक साबित होता रहेगा। दलितों ने ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाकर अपनी क़यादत मज़बूत की। इस बात को जितनी जल्दी हमारे मुस्लिम पैरेंट्स समझेंगे उतना बेहतर है बाकी चुप रहे तो लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर मुसलमानो की अर्थियां लटकती रहेगीं। बड़े गर्व से कहा जायेगा यही तो लोकतंत्र यही तो सेक्युलरज़िम है।
-अहेमद कुरेशी
महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष, रिहाई मंच