चुनाव सर पर है और मुसलमानों के खुन के धब्बे अपनी छाप छोङने लगे हैं, हाँ बात उत्तर प्रदेश की ही है, अमेठी जनपद के थाना बाजार शुक्ल महोना में एक मुस्लिम परिवार के 11 लोगो की सरेरात हत्या कर दी गयी, जिनमें 6 बच्चे भी शामिल हैं, परिवार के मुखिया का नाम जमालूद्दीन है।
पुलिस पहुंचती है और हत्या के कारणों का पता लगाने का काम शुरु होता है , लेकिन जब पुलिस नाकाम साबित हो रही है तो परिवार के 11 लोगों के क़त्ल का इलज़ाम परिवार के मुख्या जमालुद्दीन पर डाला जा रहा है। जब की नीचे दी तस्वीर कुछ और ही ब्यान कर रही है| ऐसा लगता है कि जमालुद्दीन फंदे पर लटका नहीं उसे मार कर लटकाया गया है। क्योंकि जमालुद्दीन की लाश के पैर से चप्पल तक नहीं गिरी, हालाकि फाँसी के फंदे पर लटकने वाला छटपटाता है |
सिलेण्डर दूर रखा हुआ है जब की फंदे पर लटकने वाला कुर्सी/सिलेंडर या अन्य किसी वस्तु का सहारा लेकर गले में फंदा डाल कर पैर की ठोकर से सिलेंडर या कुर्सी को गिराता है, लेकिन यहाँ पर सिलेंडर थोड़ी दूरी पर देखा जाता है और सिलेंडर फर्श पर गिरता भी नहीं | और तो और क्या ऐसा हो सकता है 11 लोगों का बेरहमी के साथ तेज़ धार से गला घोटा जाए और क़ातिल के कपड़े और हाथ पर खून का एक छीटा तक न मिले ??
पुलिस प्रशाशन पूरी तरह खून का इल्जाम जमालुद्दीन के सर पर डाल कर फाईल को बंद करने की कोशिश में है लाशों पर गलत खबर बनाने आये मिडिया वालों की गाड़ी भी गांव वाले गुस्से में आकर जला देते हैं.
अब सवाल यह है कि जमालुद्दीन को पुरे परीवार समेत खुद की जान लेने की जरूरत ही क्या थी ? और अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस प्रशासन कातिलों को तलाश करे, हाँ अगर फाइल बन्द होती है तो यह मान लिया जाएगा की कत्ल होने वाले का नाम जमालुद्दीन था इसलिए कातिल को ढुंढने में ढिलाई की गई वर्ना कोई श्याम या राहुल होता तो अब तक कई संदिग्ध गिरफ्तार भी हो गए होते ,
कब ये समझोगे के मुसलमान भी इन्सान ही है , उनका भी परीवार होता है जिसके बिखरने का दर्द उनको भी होता है और उन का खुन भी लाल ही होता है जिसके बहने पर भी जिंदगियां तबाह होती है।
(Mohd Ali Khan इनकी फेसबुक वाल से)
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