गाज़ियबाद। मुस्लिम समाज के लोगों में इस बात का रोष रहता है कि जब फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने 1848 में भारत का पहला गर्ल्स स्कूल खोला, फिर सावित्रीबाई फुले राष्ट्र नायिका क्यों और फातिमा शेख के हिस्से में अंधकार क्यों? फातिमा शेख की बात क्यों नहीं होती? इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि नायिका और नायक होते नहीं हैं, बनाना पड़ता है। लोग तो अपना किरदार निभाकर चले जाते हैं, बाकी का काम आने वाली नस्लों को करना पड़ता है। सावित्रीबाई फुले के चाहने वालों ने बड़ी मेहनत से उनके काम को स्थापित किया। मुसलमानों ने फातिमा शेख के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है। फातिमा शेख को जो मान्यता मिली है, उसे दिलाने का काम अब तक गैर मुसलमानों ने ही किया है। स्कूल खुला उस्मान शेख के मकान में, फातिमा शेख टीचर, लेकिन इस बात को बताने में मुसलमान शरमाता? फातिमा शेख का काम इतना महान है, कि उन्हें स्थापित होने से कोई रोक नहीं सकता।
आज से लगभग 150 सालों तक भी शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुँच पाई थी। जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चूका था लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे। लडकियों की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था। क्रांतीसुर्य जोतीराव फुले पूना में 1827 में पैदा हुए। उन्होंने बहुजनो की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था। उन्हें पता था की बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है। इसी लिए वो चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए। विशेषतः वो लड़कियों के शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे। और इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया। उन्होंने सब से पहले अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित किया। जोतीराव अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तय्यारियों में जुट गए।
ये बात उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं आई। उनका चारों ओर से विरोध होने लगा। जोतीराव फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे। जोतीराव नहीं माने तो उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया गया। अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पड़ा। मज़बूरी में जोतीराव फुले को अपना घर छोड़ना पडा। उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे। उन्होंने जोतीराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया। यहीं जोतीराव फुले ने अपना पहला स्कूल शुरू किया। उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे। उनकी एक बहन फातिमा थीं जिसे वो बहुत चाहते थे। उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण की। सावित्रीबाई के साथ वो भी लिखना पढना सिखने लगीं। बाद में उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की।
क्रांतीसुर्य जोतीराव फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल कायम किये। सावित्रीबाई और फातिमा ने वहां पढ़ाना शुरू किया। वो जब भी रास्ते से गुज़रतीं तो लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर मारते। दोनों इस ज्यादती को सहन करती रहीं लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया। फातिमा शेख के ज़माने में लडकियों की शिक्षा में असंख्य रुकावटें थीं। ऐसे ज़माने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की। दूसरों को लिखना पढना सिखाया। वो शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं जिन के पास शिक्षा की सनद थी। फातिमा शेख ने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएँ दीं, उसे भुलाया नहीं जा सकता। घर घर जाना, लोगों को शिक्षा की आवश्यकता समझाना, लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना, फातिमा शेख की आदत बन गयी थी। आखिर उनकी मेहनत रंग आने लगी। लोगों के विचारों में परिवर्तन आया। वो लड़कियों को स्कूल भेजने लगे। लडकियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी। स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी। मुस्लिम लड़कियां भी ख़ुशी ख़ुशी स्कूल जाने लगीं। (गाजियाबाद दस्तक से साभार)