आज़ादी के बाद से आज तक हर चुनाव में हमारी क़ौम को तेज़पात के पत्तो की तरह इस्तेमाल किया गया है। जब ज़रूरत हुई तब सियासी दलों ने हमारी क़ौम को इस्तेमाल किया है। और ज़रूरत पूरी होने पर तेज़पात के पत्तो की तरह निकालकर फेंक दिया गया है। इतिहास गवाह है चुनावो में सबसे ज्यादा मुस्लिम क़ौम ही ठगी गई है। क्योंकि इसका कोई नेता नही है।
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हमारे आब-ओ-अज़दाद ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक और हमने सोनिया से लेकर राहुल गांधी तक को अपना नेता तस्लीम किया है। हमने कभी माया-मुलायम को अपना नेता माना, कभी लालू-नितीश को अपना नेता माना, तो कभी ममता और अखिलेश को नेता माना है। हमारी क़ौम बरसो इनपर भरोसा करती रही और इन्हें अपना नेता मानकर वोट भी देती रही है। मगर बदलें में इन्होंने हमें झूठे वायदों के सिवा कभी कुछ नही दिया है। हमारी क़ौम ने कभी अपनी क़ौम के लीडर को अपना नेता नही माना।
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इनकी ज्यादतियों को देखकर हैदराबाद से असदुद्दीन ओवैसी क़ौम की रहनुमाई करने निकले हैं। अगर इन नेताओं ने मुसलमानो को उनका वाज़िब हक़ दिया होता तो आज असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानो के नेता बनने हैदराबाद से उत्तर प्रदेश नही आते। आज का पढ़ा-लिखा नौजवान तबका असदुद्दीन ओवैसी के साथ है। इस चुनाव में ओवैसी की पार्टी हारे या जीते इतना तो तय है कि असदुद्दीन ओवैसी प्रदेश के मुसलमानो को बेदार कर सियासत का मर्म समझा जाएंगे। ओवैसी का यही क़दम आने वाले दिनों में इंक़लाब लाएगा। चुनावी सरगर्मियों से दूर रहने वाला मुस्लिम नौजवान तबका असदुद्दीन ओवैसी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद चुनाव में खासी दिलचस्पी ले रहा है। और सियासत की अहमियत भी समझ रहा है।
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यही नौजवान तबका आगे चलकर कथित सेक्युलर दलों को बेनक़ाब करेगा और सियासत में अपना वुज़ूद क़ायम करेगा। फ़ौलादी है सीना अपना फ़ौलादी हैं बाहें हम जो चाहें तो पैदा कर दें चट्टानों में राहें।
इंक़लाब_ज़िन्दबाद
-अतीक़_अत्तारी