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मैं बिलाल हूँ ......! (हजरत बिलाल राजिअल्लाहू अन्हु)




मैं बिलाल हूँ !ह्ब्शा मेरा वतन था मेरे अब्बा का नाम रिबाह था वो भी गुलाम थे और मेरी अम्मी का नाम हमामा था और वो भी गुलाम थी !गोया कि मैं खानदानी गुलाम हूँ !जब मुझे मक्का की मण्डी में मेरे आका उम्मिया बिन खल्फ़ ने खरीदा तो जानते हो उन दिनों गुलाम क्या चीज़ हुआ करती थी ? भेड़ ,बकरी.गाय या ऊंट की कुछ कद्र थी लेकिन गुलाम उस से भी बहुत कमतर था !गुलाम जब बिकता था तो सिर्फ मौत ही उसे आज़ाद कराती थी !उस की ज़िन्दगी उस के मालिक का हुक्म बजा लाना होता था !गुलाम हुक्म न मानने का तो कभी ख्याल भी नही कर सकता था !



मेहनत के बोझ तले आकर गुलाम मर गया तो मालिक की बला से !उसे अगर गम होता तो सिर्फ ये कि उसकी रकम का नुकसान हो गया !वरना गुलाम की ज़िन्दगी खत्म हो जाने का कोई दुःख नही होता था !मैं दो मर्तबा गुलाम बना !पहली मर्तबा उम्मिया बिन खलफ मक्का के एक सरदार ने मुझे खरीदा और दूसरी बार अबू बकर र०अ० ने मुझे उस से खरीद कर मुहम्मद स०अ०व० का गुलाम बना दिया !पहले मालिक की गुलामी में जलील व् ख्वार थे और मुझे इस बेदर्दी से मारा जाता था के एक मर्तबा मुझे उसकी मार की वजह से मुर्दा समझ कर ही छोड़ कर चले गए !दूसरी गुलामी में मैं इतना मुअज्ज़िज़ हुआ के आधी दुनिया के बादशाह हज़रत उमर र०अ० मुझे "सय्यदना बिलाल" कहकर पुकारा करते थे !ये गुलामी मेरे लिए बादशाही से कम न थी !मुझे सरदार ऐ दो जहाँ की वो खिदमत नसीब हुयी जिसे बड़े बड़े सरदारों ने भी रश्क की निगाहों से देखा !

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