सीता मेरे पास मदद मांगने आयी थी,
वह करीबन अट्ठारह बरस की आदिवासी लड़की थी,
सीता के साथ पुलिस वालों नें घर में घुस कर सामूहिक बलात्कार किया था ,
गांव का नाम सामसेट्टी जिला सुकमा, सन 20O7,
मैं सीता को लेकर कोर्ट पहुंचा,
सीता का मामला मैनें भारत के गृह मंत्री को सौंपा ,
भारत का गृहमन्त्री राष्ट्रवादी था,
उसने पुलिस की तरफदारी करी,
भारत के गृहमन्त्री ने पुलिस को कहा कि सीता को खामोश कर दो,
पुलिस वाले सीता के घर जाकर उसे उठाकर थाने ले गये,
सीता के साथ कोर्ट में केस होने के बावजूद 5 दिन तक पुलिस वालों द्वारा दोबारा बलात्कार किया गया,
पुलिस वालों नें 5 दिन के बाद सीता को गांव के चौराहे पर फेंक दिया और चेतावनी दी कि अबकी बार अगर हिमांशु कुमार के साथ बातचीत भी करी तो पूरे गांव को आग लगा देंगे,
मेरे आश्रम पर बुलडोजर चला दिया गया,
मुझे छत्तीसगढ़ से निकाल दिया गया,
मेरे विरूद्ध नक्सलवादी होने के करीब 10O वारंट निकाल दिये गये,
एक साल बाद सीता को पुलिस वाले जीप में डाल कर अदालत में ले गये,
बन्दूक की नोक पर सीता से केस वापिस करवा दिया गया,
सीता की मदद करने वाले को देशद्रोही घोषित कर दिया गया,
सीता से बलात्कार करने वाले और बलात्कारियों की मदद करने वाले राष्ट्रवादी बन गये,
इस मामले पर दि हिन्दु, हिन्दुस्तान टाइम्स, स्थानीय मीडिया ने कई बार लिखा,
सीता अभी भी जंगल में न्याय का इंतज़ार कर रही है,
इधर मैं पागल वख्त बदलने का इंतज़ार कर रहा हूँ,
मैं जब सीता शब्द सुनता हूँ ,
तो मेरे जेहन में उस जंगली सीता की तस्वीर उभरती है,
आइंदा आप जब सीता, राष्ट्रवाद और पागल शब्द सुनें तो उन्हें इन संदर्भों में भी सोचियेगा,
और प्लीज अगर आपकी कोई बेटी हो तो उसका नाम सीता या सोनी सोरी मत रखियेगा,
ये नाम बहुत तकलीफ देते हैं,
(डिस्क्लेमर -उपरोक्त विचार/साक्षात्कार हिमांशु कुमार के है, इससे सोशल डायरी का कोई सम्बन्ध नहीं)
(डिस्क्लेमर -उपरोक्त विचार/साक्षात्कार हिमांशु कुमार के है, इससे सोशल डायरी का कोई सम्बन्ध नहीं)