तीन तलाक़ पर रोक से चिल्लाते क्यों हो। कोर्ट मुसलमान तो है नहीं, मगर तुम तो मुसल्लम ईमान वाले हो। तुमने कागज़ के पुर्ज़ों पर, पोस्ट कार्डो पर तलाकनामे भेजे। तुमने फोन पर तलाक़ दिया। क्या किन्ही ख़ास हालात में इस्तेमाल किया जाने वाला तीन तलाक़ इसी लिए बनाया गया था?
अगर चन्द खुदगर्ज़ लोगो ने ऐसा किया तो तुम ने आगे बढ़ कर उसकी मुखालफत क्यों नहीं की। ज़िम्मेदार ओलेमा ने आवाज़ क्यों नहीं उठाई। बहैसियत सच्चे मुसलमान की तरह अगर तुमने आवाज़ उठाई होती तो आज कोर्ट को मुदाखलत का मौका क्यों मिलता।
अब आप दूसरे मज़हबों का हवाला देकर अपनी बात सही साबित न करना। औरते जलाई जाती हैं, मारी जाती है, यह कह कर तीन तलाक़ का बचाव न करना। शरीयत बचाने के लिए मुस्लमान का ईमानदार और इन्साफ पसन्द होना पहली शर्त है।
पोस्टकार्डों , मोबाइल पर तलाक़ देकर न आप शरीयत बचा सकते हैं न इस्लाम।
Nazeer Malik
(नजीर मालिक फेसबुक यूजर है उनकी वाल से साभार)
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