(नजीमुद्दीन की तस्वीर हिमांशु कुमार की वाल से साभार) |
हिमांशु कुमार एक सामाजिक कार्यकर्ता है. वह अपने बेबाक कार्य से जाने जाते है. वह आदिवासियों के इन्साफ की लड़ाई लड़ रहे है. उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में अजीमुद्दीन की कहानी अपने फेसबुक वाल पर शेयर की है. उन्होंने लिखा है की, अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर कल कोलकता पहुंचना था, ट्रेन 16 घन्टे लेट हुई, आधी रात को मुझे लेने स्टेशन पर जो भाई आये, उनका नाम अजीमुद्दीन सरकार है, उन्हें चलने में कुछ तकलीफ लग रही थी, मैनें उनसे पूछा आपको क्या हुआ है ? उन्होंने जो बताया वह कम से कम आज आप को सुन ही लेना चाहिये, अजीमुद्दीन भाई ने मासूम संस्था से जुड़ कर बांग्लादेशी मज़दूरों के साथ बीएसएफ और पुलिस द्वारा किये जाने वाला अमानवीय अत्याचारों के मामलों की जांच शुरू करी, इससे पुलिस और बीएसएफ में घबराहट फैली, अजीमुद्दीन भाई को थानेदार ने कई बार बुला कर यह काम छोड़ने के लिये समझाया, पुलिस ने घर खर्च के लिये पैसा देने का भी लालच दिया, अजीमुद्दीन भाई ने अपना काम नहीं छोड़ा,
21 नवम्बर 2O14 को पुलिस अजीमुद्दीन भाई के घर में घुसी, घर में अजीमुद्दीन भाई की बेटी और पत्नी थीं, पड़ोसी भी जमा हो गये, पुलिस ने सबके सामने अजीमुद्दीन भाई को नंगा किया, और उन्हें वहीं इतना मारा कि कमर कन्धा और टांग की 4 हड्डियां टूट गईं, अजीमुद्दीन भाई की दोनों टांगों को पकड़ कर दोनों तरफ खींचा गया, जिससे टांगों के बीच का लिगामेंट फट गया, इसके बाद हाथ और पांव को पकड़ कर किसी गठरी की तरह पुलिस वैन में फेंक दिया, पुलिस वैन में अजीमुद्दीन भाई को खून की उल्टी हुई, पुलिस नें वैन में अजीमुद्दीन भाई को वो सारी उल्टी अंजुरी में जमा करने को कहा, अजीमुद्दीन भाई को उल्टी में निकला अपना सारा लहू पीने को कहा गया, यह सब बताते हुए अजीमुद्दीन भाई की आंखे भर आयी थीं, आंखों में पानी मेरे भी था , लेकिन कहानी अभी जारी थी, अजीमुद्दीन भाई को कोर्ट ने अगले ही दिन बरी कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ केस बनाने लायक कोई आधार ही पुलिस के पास नहीं था, सितम्बर 2O15 में अजीमुद्दीन भाई को पुलिस ने घर से फिर से उठाया, इस बार फर्जी आरोपों के आधार पर उन्हें 77 दिन तक जेल में विचाराधीन बंदी के रूप में रखा गया, लेकिन अदालत नें फिर से अजीमुद्दीन भाई को बाइज्जत बरी कर दिया,
अजीमुद्दीन भाई रात से मेरे साथ हैं, कह रहे हैं हिमांशु भाई आप से हमें ताकत मिलती है, मैं उनसे बार बार कह रहा हूँ, कि अजीमुद्दीन भाई समाज को प्रेरणा तो आप जैसे लोगों से मिलती है, जो लोग पिट रहे, सताये जा रहे लाखों बेज़ुबान लोगों के हको के लिये, गांवों, कस्बों में लड़ते हैं, तकलीफें झेलते हैं , और अपना शानदार काम पूरा कर एक दिन जाकर कब्र में सो जाते हैं, इनकी मूर्ति चौराहे या संसद भवन में कभी नहीं लगती, ये दरअसल इंसानियत की इमारत की नींव के मज़बूत पत्थर हैं, ये ना होते तो समाज कभी का भरभरा कर गिर कर मिट जाता, सलाम मेरे दोस्त अजीमुद्दीन भाई,
(डिस्क्लेमर- उपरोक्त साक्षात्कार हिमांशु कुमार के फेसबुक वाल से लिया गया है, यह उनके और अजीमुद्दीन के बिच हुई गुफ्तगू को उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. इस लेख के लिए लेखक खुद जिम्मेदार है. इस साक्षात्कार में सोशल डायरी सहमति हो ही ऐसा नहीं है हिमांशु कुमार फेसबुक )