दो कथित अपराधियों को कोर्ट से जमानत मिली है एक राजद के पूर्व सांसद श्री शहाबुद्दीन जी हैं तो दूसरे हिंदूवादी श्री असीमानंद जी। अपराधी तो अपराधी होता है चाहे वह कोई हो, किसी धर्म या जाति का हो लेकिन हमारा पैमाना अपराधी मानने का कुछ अलग है। हम सभी जाति और धर्म के आधार पर अपराधियों का चिन्हीकरण करते हैं। भारतीय परिदृश्य में तो अपराधी जाति और धर्म के आधार पर पूज्य और त्याज्य होता है।
कभी खुशी, कभी गम
कुछ दिनों से बड़ा शोर है बिहार के राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन जी के जमानत पर। कोर्ट ने 11 वर्षों बाद शहाबुद्दीन जी को जमामत क्या दे दिया पूरी मीडिया इसे सर पर उठा ली है, भाजपा तो शहाबुद्दीन जी की नींद सो और जग रही है। प्रशांत भूषण जी जैसे देशभक्त ने सुप्रीम कोर्ट में शहाबुद्दीन जी के जमानत के बिरुद्ध अर्जी लगा दिया है। मैं शहाबुद्दीन जी की न ही तरफदारी कर रहा हूँ न उन्हें क्लीन चिट दे रहा हूँ लेकिन एक सवाल जरूर छोड़ रहा हूँ कि हत्या के मामलो में नामजद शहाबुद्दीन की यदि वर्षों बाद कोर्ट से जमानत होती है तो बिहार में फिर अपराधियो के शासन का अंदेशा हो जाता है तो समझौता ब्लास्ट के आरोपी असीमानंद की जमानत से ऐसी परिस्थितियां नही पैदा होंगी क्या?
किसी न्यूज चैनेल ने असीमानंद जी के जमानत पर कोई डिबेट चलाया है क्या? भाजपा या किसी दल ने असीमानंद जी की जमानत पर अफ़सोस जाहिर किया है क्या? किसी प्रशांत भूषण जैसे राष्ट्रवादी ने असीमानंद जी की जमानत के बिरुद्ध याचिका दाखिल की है क्या? क्या असीमानंद जी अपराधी नही हैं?क्या प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और रणवीर सेना को अपराधी नही मानते प्रशांत भूषण? वही रणवीर सेना जिसने सैकरों निर्दोष दलित-पिछड़ों को मौत के घाट उतार दिया था। जिसका साक्ष्य के साथ खुलासा खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर कोबरापोस्ट ने अपनी एक प्रोगराम "ऑपरेशन ब्लैक रेन" नाम से जारी किया था जिसमे प्रशांत भूषण जी अतिथि के रूप में मौजूद थे बावजूद इसके प्रशांत भूषण जी इसे विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट क्यों नही गये जब कि रणवीर सेना का प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह 'मुखिया' लगभग 30 जनसंहारों का मास्टरमाइंड था जो शहाबुद्दीन के अपराध से कहीं ज्याद संगीन और जघन्य अपराध है.
इन जनसंहारों में दर्जनों बच्चों सहित लगभग 279 लोगों की जान गई थी. इसमें 16 मामलों में पहले ही बरी हो चुकने चुके थे ब्रह्मेश्वर सिंह 'मुखिया' तब भी प्रशांत क्यों नही गये सुप्रीम कोर्ट ? आपको बता दें कि पटना की एक विशेष अदालत ने सात अप्रैल 2010 को बिहार के अरवल जिले के लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार मामले में 16 अभियुक्तों को फांसी और दस को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश विजय प्रकाश मिश्र ने इस मामले में 26 को दोषी ठहराते हुए उनमें से 16 को फांसी और दस को उम्रकैद तथा 31-31 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई. 19 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया. जिसे गलत ठहराते हुए 9 अक्टूबर, 2013 को पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटने के साथ सभी 26 दोषियों को रिहा कर दिया। अगर प्रशांत भूषण जी न्याय प्रिये है तो उसी पटना हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध देश के सबसे बड़े कोर्ट का दरवाज क्यों नही खटखटाया था? सिर्फ शहाबुद्दीन के विरुद्ध ही क्यों सुप्रीम कोर्ट जाना चाहते है भूषण?
"ऑपरेशन ब्लैक रेन" में प्रशांत भूषण
क्या उनका हिन्दू होना अपराधी होने के बावजूद पूज्य है तथा हम शहाबुद्दीन के मुसलमान होने के कारण उनके जमानत से खफा हैं? क्या दोनों को एक तराजू पर नही रखना चाहिए? क्या न्याय की अवधारणा हिन्दू-मुसलमान के आधार पर अलग-अलग होगी? वैसे न्यायालय ने तो हिन्दू-मुसलमान नही देखा है, इसने विधिक तौर-तरीको से दोनों को जमानत दी है लेकिन मीडिया, प्रेस, पॉलिटिकल लोग और कथित बुद्धिजीवी जिस तरीके से शहाबुद्दीन और असीमानंद के प्रकरण पर मुखर और चुप हैं वह यही कहता है कि हम अपराधियों को भी धर्म और जाति के आधार पर महिमामण्डित और तिरस्कृत कर खुद ही बहुत बड़ा अपराध कर रहे।।
मैं समझता हूँ कि मनुवाद आज भी उसी रूप में बदस्तूर कायम है, जैसा हजार वर्ष पहले था। मनु ने लिखा है कि ब्राह्मण का अपराध, अपराध नही है, क्षत्रिय का अपराध मामूली प्रायश्चित से खत्म हो जाएगा जबकि शूद्र को कठोर से कठोरतम दंड का प्राविधान है। अपराध एक ही लेकिन सजा, माफ़ी, प्रायश्चित और पुरस्कार अलग-अलग जाति और वर्ण के हिसाब से निर्धारित है। हम आज भी आजादी के बावजूद मनु के संविधान को दिमाग में रखे हुए हैं तथा एक ही तरह के अपराधी शहाबुद्दीन और असीमानंद को जाति, वर्ण एवं धर्म के आधार पर अलग-अलग नजरिये से देख रहे हैं। क्या यही न्याय का तकाजा है?
-चन्द्रभूषण सिंह यादव, लेखक यादव शक्ति पात्रिका के प्रधान सम्पादक है.