अस्सलाम वालेकुम रह्मतुल्लाही व-बरकातुह
मैंने बहुत सोचा था की, चुप रहू. लेकिन आज मैं जिस दौर से गुजर रहा हूँ वह दौर से किसीको ना गुजरना पड़े इसलिए मुख़्तसर सवाल आपके लिए छोड़ रहा हूँ. जो आप उनसे पूछ सकते है जिस संगठन या पार्टी में आप काम कर रहे हो. और मैं यह भी जानता हूँ के मैं यह जो लिख रहा हूँ मेरे लिए बहुत बड़ा ख़तरा है. और मुझे कई मुसीबतों का सामना करना पडेगा. मेरे खिलाफ कई तरह की साजिशे हो रही है. आपके साथ यह ना हो बस यही दुआ है.
इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो हर मजलूम के साथ बिना किसी स्वार्थ (मफात) के खडा होने का हुक्म देता है, और अच्छा काम करने पर मुआवजे की नियत ना रखो यह भी ताकीद करता है. लेकिन इस्लाम यह भी बात करता है की मुसलमान वही होता है जो धोका नहीं खाता. तब हमको तो अल्लाह के हुक्म के हिसाब से मजलूमों का साथ तो देना है. लेकिन जालिमो के साथ मिलकर नहीं. मजलूमों के साथ मिलकर हमको मजलूमों का साथ देना है. अब सवाल यह उठता है की. धोकेबाजो को कैसे पहचाना जाए. जिसके लिए मैं आपको कुछ सवाल बताउंगा.
01. मजलूम और बेगुनाह रोहित वेमुला का क़त्ल, कई आंदोलन हुए.
मजलूम और बेगुनाह अखलाख के लिए उफ्फ तक नहीं, क्यों ?
02. कई बहुजन महापुरुषों का इतिहास प्रकाशित करना सराहनीय कार्य
एक भी मुस्लिम महापुरुष का इतिहास प्रकाशित नहीं, क्यों ?
03. कई सालो में लाखो कार्यक्रम किये गए मंच को महापुरुषों और मजलूमों का नाम दिया गया सराहनीय है.
एक भी मुस्लिम महापुरुष या मुस्लिम मजलूम का नाम नहीं दिया गया क्यों ?
04. 52 हजार बेगुनाह मुसलमान सलाखों के पीछे है यह जोर जोर से चिल्लाया जाता है, सराहनीय
आज 52 हजार से आंकड़ा 82 हजार हुआ क्यों ?
05. हर बहुजन महापुरुष के बदनामी और अपमान को लेकर आंदोलन में मुसलमान सबसे आगे, सराहनीय
मुहम्मद पैगम्बर(स.) पर आपत्तिजनक टिपण्णी पर खामोशी, क्यों ?
06. अहमदनगर के भोतमांगे परिवार का कत्लेआम, जगह-जगह आंदोलन, सराहनीय
मुजफ्फरनगर, आसाम, दादरी, डीएसपी जियाउल हक़ इनपर खामोशी क्यों ?
07. फलिस्तीन का समर्थन, इजराईल के खिलाफ (सिर्फ दो चार जगह) आंदोलन, सराहनीय
म्यानमार पर खामोशी क्यों ?
08. उपरोक्त सभी कार्यो में मुसलमानों का साथ सहयोग, सराहनीय
क्यों का जावा कौन देगा ?
01. हैदराबाद के बेगुनाह रोहित वेमुला का क़त्ल किया गया. उस बेगुनाह के लिए कई संगठनो ने कई आंदोलन किये. और ख़ास कर मुसलमानों को साथ में लेकर भी कई आंदोलन चलाये गए. और जब ऐसा जुल्म होता है तो मुसलमानों ने सबके सामने जुल्म के खिलाफ लड़ाई में शामिल होना चाहिए मैं इससे इनकार नहीं करता. क्यूंकि इस्लाम यही हुक्म देता है.
लेकिन सवाल यह है की, दादरी में जिसका क़त्ल किया गया वह मुहम्मद अखलाख क्या गुनाहगार था ? सब लोग कहेंगे नहीं. तो फिर रोहित वेमुला के लिए जिन लोगो ने मुसलमानों को लेकर आंदोलन चलाया उन्होंने अखलाख के लिए आंदोलन क्यों नहीं चलाया ? प्रोग्रामो में रोहित वेमुला विचार मंच के नाम से नाम रखा गया बहुत अच्छी बात है. कितने विचार मंच का नाम अखलाख रखा गया?
02. पुमा में बेगुनाह मोहसिन शेख का क़त्ल किया गया, कुछ संगठनो ने मोहसिन शेख के नाम से कई प्रोग्राम लिए लेकिन एक भी प्रोग्राम में मोहसिन शेख का नाम तक नहीं लिया गया. और ना उसके बेगुनाह होने का विश्लेषण और गुनाहगारो का पर्दाफ़ाश नहीं किया गया. प्रोग्राम तो बेगुनाह मजलूम मोहसिन शेख के नाम से था. पब्लिक भी इकट्ठा की गयी मोहसिन शेख के नाम से ही.
तब सवाल यह उठाता है की, मोहसिन शेख के कातिलो पर कितने केसेस हुए ? कितने आंदोलन हुए ? कितनी बार सरकार का निषेध किया गया?
03. ठीक है दस्तूर यानी हमारा संविधान. हम भारत के मूलनिवासी है इसलिए तो बादमे लेकिन हजरत मुहम्मद (स.) हादिस (हुक्म) के मुताबिक़ हम जिस वतन में रहते है उस वतन का कानून अगर इस्लाम के खिलाफ ना हो तो हमको वह कानून मानना भी है और उसकी हिफाजत भी करना है. तो दस्तूर बचाओ कार्यक्रम बहुत ही सराहनीय है. लेकिन दिन (मजहब) बचाओ ? मेरे यह समझ में नहीं आरहा है की, दीनदार नहीं बचेंगे तो दिन कैसे बचेगा ? मैं खुद तीन सालो से चिल्ला रहा हूँ के 52 हजार बेगुनाह सलाखों के पीछे सड रहे है. और परसों अचानक 52 हजार का आंकड़ा 82 हजार हो गया. तब मैंने सोचा के अगर कोई बेगुनाह मुसलमानों के लिए लडाई लड़ रहा है तो फिर जेल में फंसे लोगो की तादाद तो कम होनी चाहिए. और बेकसूर छूटे मुसलमानों की लिस्ट भी जारी होनी चाहिए. ना लिस्ट जारी हुई ना आंकडा कम हुआ. और एक बात दिन बचाना काम तो अल्लाह के जिम्मे है. हमको सिर्फ दिनदारो को बचाना है. तब सवाल यह उठता है की,
किसने कितने बेगुनाहों को रिहा करवाया ? उसकी लिस्ट सोशल मीडिया पर प्रकाशित होनी चाहिए. और 52 हजार से 82 हजार कैसे हुए इसपर भी सोचना चाहिए. भारत में म्यानमार नहीं होगा इसकी क्या ग्यारेन्टी ? भारत में फलिस्तीन नहीं होगा इसकी भी क्या गारेंटी ?
03. जिन लगो ने हजारो बहुजन महापुरुषों की लाखो किताबे लिख डाली और प्रकाशित भी की, और भी प्रकाशन जारी है.. लोगो तक इतिहास पहुँचने के मकसद से यह बहुत ही सराहनीय कार्य है. जिससे हर किसीको अपना इतिहास पता चलेगा. और मुसलमानों को भी पता चलेगा की, छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज जैसे और बहुत सारे महापुरुष यह मुसलमानों के या इस्लाम के दुश्मन नहीं थे. और असली दुश्मन कौन थे यह हम सबको पता लगे इसलिए बहुजन महापुरुषों का इतिहास लाखो की तादाद में छपवाना एक बहुत अच्छा और सराहनीय कार्य है. लेकिन अब सवाल यह उठाता है की,
टीपू सुलतान (र.), औरंगजेब (र.), उस्मान शेख, फातिमा शेख, सर सय्यद अहेमद, और कई मुस्लिम महापुरुषों का इतिहास बताने वाली कितनी किताबे छपवाई ? अगर छपवाई तो कहाँ है ? और अगर नहीं छपवाई तो क्यों ? सिर्फ इसलिए की यह मुस्लिम है ?
अगर इन महान हस्तियों का इतिहास गैरमुस्लिम बहुजनो को पता नहीं चलेगा तो वह मुसलमानों को अपना कैसे समझेंगे ? उनका इतिहास हमको सिखाया जा रहा है हमारा इतिहास उनको क्यों नहीं ? इसके पीछे भी कोई साजिश तो नहीं ? खाली मुसलमान हमारे भाई है कहने से काम नहीं चलेगा. इस बात पर भी गौर करना होगा.
04. भाषणों में बताया जाता है की, डा. बाबासाहब आंबेडकर जी को मुसलमानों ने तालाब का आंदोलन करने को जगह दि. मुसलमानों ने बंगाल में बाबासाहब को चुनाव में जीत हासिल करवाई, फातिमा शेख ने सावित्रीमाई फुले जी को साथ दिया, उस्मान शेख ने राष्ट्रपिता जोतीराव फुले को सहारा दिया, बस मैंने जितना लिखा उतना ही कहा जाता है. लेकिन इनका इतिहास नहीं लिखा गया. (दुसरे लोगो ने लिखा होगा, मैं उन लोगो की बात कर रहा हूँ जो लोग मुसलमानों को लेकर काम कर रहे है) पहले मनुवादियों ने नहीं लिखा अब बहुजनवादी लिख सकते है लेकिन कोई लिखने को तैयार नहीं. कुछ मुस्लिम कार्यकर्ताओं ने लिखने की जिम्मेदारी भी ली थी लेकिन उनसे भी नहीं लिखवाया गया. जब पता चला के यह आदमी कुछ ज्यादा ही कह रहा है तब ऐसे लोगो को संगठन से बाहर भगाया जाता है. अब सवाल यह उठता है की,
मुसलमानों को फातिमा शेख, उस्मान शेख का हवाला देकर इकट्ठा करने वालो ने इनका इतिहास क्यों नहीं छपवाया ? क्या सिर्फ मुसलमानों को इकट्ठा करने के लिए इनका नाम लिया जाता है ?
05. व्यवस्था परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन क्या होता है ? व्यवस्था परिवर्तन करना कोई आसान काम नहीं है. और जो लोग कहते है की, कब होगा जनान्दोलान कितने साल लगेंगे ? ऐसे लोग बेवकूफ है. जनांदोलन करने का मतलब धरना आंदोलन नहीं है. मैं उन लोगो को बेवकूफ समझता हूँ जो कहते है की, "35 साल हो गए कब होगा जनांदोलन ?" लेकिन एक बात तो तय है अगर मुसलमानों के साथ ऐसा ही व्यवहार होता रहा तो जनांदोलन अगले पांच हजार साल तक भी नहीं हो सकता. क्यूंकि डा. बाबासाहब आंबेडकर जी ने जिनके लिए अपनी और अपने परिवार की जिंदगी को ख़त्म कर दिया उस महामानव बाबासाहब आंबेडकर जी को बंगाल में मुसलमानों ने जित दिलाई. क्यूंकि मुसलमान इमानदार होता है वफादार नहीं होता. और मुसलमानों ने बाबासाहब को जित दिलाकर अहेसान नहीं किया, लेकिन पुरे देश का भला किया. फिर उस गद्दार और इमानदार कौम का इतिहास कब लिखा जाएगा ? क्या इमानदार लोगो का इतना भी हक़ नहीं बनता की वह इतिहास के पन्नो में दर्ज हो ? फिर फर्क क्या है बहुजनवादी और मनुवादियों में ? और अब वर्त्तमान में जो मुसलमान साथ सहयोग दे रहे है. उनके साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है ? तो अब सवाल यह उठाता है कि,
तो फिर मुसलमानों के साथ धोकेबाजी नहीं तो क्या है ? कभी किसीने इस बात पर गौर नहीं किया. और जो लोग गौर करते है उनको घरका रास्ता दिखाया जाता है. और उनके खिलाफ साजिशे की जाती है. और वही गैरमुस्लिम हो और गद्दार हो तो उसको खुला छोड़ दिया जाता है. यह तो मनुवादी निति है ना?
अब बात एक विशेष व्यक्ति की, जिसका नाम लिए बिना कहूंगा. लेकिन 99% लोगो के समझमे आयेगा के जिक्र किसका हो रहा है. एक मुसलमान लड़का था उम्र महज 31 साल, जो एक बहुजन संगठन से जुदा हुआ था करीब 6 सालो से. एक दिन कुछ कार्यकर्ताओं पर बहुत बुरा वक्त आ गया. और उस बुरे वक्त में सभी गैरमुस्लिम पिछवाड़े को पैर लगाकर भाग गए. अब सारा बोझ एक उस मुसलमान लड़के पर पडा. इलाका बड़ा होने के कारण उक्त युवक को खाना खाने तक का वक्त नहीं मिलता था. वह 16 दिन और उसके बाद के 10 दिन. कुल 26 दिन तक बिना कोई स्वार्थ के काम करने वाले और पाई-पाई का हिसाब देने वाले युवा पर आरएसएस, बजरंगदल, विएचपी, और तमाम हिन्दुत्ववादी संगठनो ने मिलकर उस युवा के खिलाफ पुलिस स्टेशन के पी.आई से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायते की, धरना किया, अनशन किया, उस वक्त कोई संगठन का साथ सहयोग नहीं मिला. जब एक वरिष्ठ से इस बारे में बात की तब उन्होंने कहा की यह आपका वयक्तिक मामला है. मेरा सवाल यह है की, व्यक्ति मामला तब होगा जब उन लोगो की लडकिया मेरे घरमे बहुए बनकर आई और मैं उनको तकलीफ दे रहा हूँ. या फिर मेरी लडकिया उनके घर की बहुए है जो यह वयक्तिक मामला है. ना वह मेरे रिश्तेदार ना मैं हुसैन ना नक्वी जो मेरा वयक्तिक मामला हो ? चलो उस साजिश से अकेले निपटारा कर लिया. फिर उसी इलाके में एक और शरीफ इंसान जो पेशे से टीचर उनका ना कोई वयक्तिक मामला ना किसीकी शिकायत. ऐसे मुसलमान टीचर को भी घर बैठाया गया. जिन लोगो ने कई मुसलमानों को जोड़ा, कई सालो तक इमानदारी से काम किया आज वह असंख्य मुश्किलों का सामना कर रहे है. और वफादार आज उनके आँखों का नूर बने हुए है. इमानदार लोगो के खिलाफ कई साजिशे की जा रही है. घरो पर पुलिस की गाडिया भेजी जा रही है. सताया जा रहा है. परेशान किया जा रहा है. दुश्मनों से दोस्ती की जा रही है.और जिन लोगो ने लाखो रुँपये हजम किये है, जिन लोगो ने 16 दिन का बुरा वक्त लाया, जिन लोगो ने सन्माननीय व्यक्ति को लिखित रूप से गन्दी गन्दी गालिया दि जो शराबी भी नहीं देता आज ऐसे लोग माँ सन्मान से है. और आँखों का नूर बने हुए है. और जो गैरमुस्लिम गद्दार है उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं. कोई साजिश नहीं. इसका मतलब साफ़ है मुसलमान इमानदारी से काम करते है उनसे काम करवा लो. और काम ख़त्म होने पर ऐसी हालात बनाने के छोडो की, वह किसी काम का भी ना रहे.
तो दोस्तों मैंने जो खुलासे लिखे है बहुत कम है. वक्त बा वक्त आगे लिखता रहूंगा. यह खुलासे लिखने से मुझे बहुत तकलीफे दि जायेगी, मुझे बहुत ज्यादा सताया जाएगा. और बहुत सी मुसीबतों में फंसाया जाएगा. लेकिन मुझे इसका कोई गम नहीं. बस मैं आप सभी मुसलमान भाइयो से अपील करना चाहता हूँ के. मजलूम चाहे किसी भी जाती धर्म से हो उनके हख के लिए मुसलमानों ने सबसे आगे रहना चाहिए. लेकिन जो धोकेबाज लोग है, जो षडयंत्रकारी लोग है, उनके साथ मिलकर कोई भी अच्छा या बुरा काम नहीं करना चाहिए. क्योंकि वह लोग काम हमसे करवाते है और नाम उनका होता है. मतलब कन्धा हमारा बंदूख उनकी. अगले को पता चल गया तो अगले की गोली और सीना हमारा.! शार्टकट में कहूँ तो, सूना है की नक्सलवादी बनने के बाद कोई वापिस नहीं आता, वापस आ गया तो जान से मार दिया जाता है. बस यही कानून कुछ संगठनो में है. फर्क सिर्फ इतना है, जान से मरने को मजबूर किया जाता है.....
नोट- अगर किसीको कोई सवाल या कोई और जानकारी चाहिए और वह मेरे पास है तो आपको जरुर मिलेगी, आप मुझे ईमेल कर सकते है. ahemad.qureshi@gmail.com
गुनाह करने वाला ही अकेला गुनाहगार नहीं होता, गुनाह में साथ देने वाला, गुनाह जानते हुए भी खामोश रहने वाला, सबकुछ जानते हुए भी छुपाने वाला गुनाहगार होता है.
मैंने चुपचाप रहने की ठान ली थी, लेकिन जालिम लोग जीने नहीं देंगे....
जारी......