नूह अलैहिस्लाम जिस कौम मे मबउस थे उस कौम मे पाँच नेक सालेहीन नेक बुजुर्ग औलिया अल्लाह थे | उनकी मज्लिशों मे बैठकर लोग खुदा को याद करते थे और मसाइल सुनते थे, इससे उनके दीन को तक्वियत पहुचती थी| जब वे ग़ुजर गए तो क़ौम मे परेशानी हुई कि अब न वो मज्लिस रही न वो मसाइल रहे, अब कहा बैठे ? उस वक्त शैतान ने उनके दिलों मे यह फूंक मारी कि इन बुजूर्गों की इबादतगाहों मे उनकी तस्वीर बनाकर अपने पास रखलों | जब उन तस्वीरों को देखोगे तो उनका जमाना याद आ जाएगा और वह क़ैफियत पैदा हो जाएगी| तो उन के पाँचों के मुजस्समें बनाए गए और उन पाँचों का नाम था 1 विद 2 सुवाअ 3 यग़ूस 4 नसर 5 यऊक | उनका कुरआन मे जिक्र है ये पाँच बुत बनाकर रखे गए ! उनका मक्सद सिर्फ तज़्कीर था की उन तस्वीरों के जरीए याद दिहानी हो जाएगी | उनको पूजना मक्सद नही था | शूरू मे जब तक लोगो के दिलों मे मारिफत रही, उन बुजूर्गों के असरात रहे |
लेकिन जब दुसरी नस्ल आई तो उनके दिलों मे वह मारफत नही रही उनके सामने तो यही बुत थे | चूनांचे कुछ खुदा की तरफ मुतवज्जेह हुए और कुछ बुतों की तरफ मुतवज्जेह हुए | और जब तीसरी नस्ल आई तब तक शैतान अपना काम कर चुका था | उनके दिलों मे इतनी भी मारफत नही रही | उनके सामने बुत ही बुत रह गए | उन्ही को सज़्दा ,उन्ही को नियाज उन्ही की नजर यहा तक की शिर्क शुरू हो गया | फिर तो नजराने वसूल किए जाने लगे मैले उर्स न जाने क्या क्या खुरापात शुरू हो गई
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तफ़्सीरे इब्ने कसीर पारा 29 ,पेज. 42 ,सूर: नूह के दुसरे रूकूअ मे
(Admin-Shahbaz इनकी फेसबुक वाल से )