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RESEARCH : सिंधु घाटी की सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी

RESEARCH : सिंधु घाटी की सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी
RESEARCH : सिंधु घाटी की सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी
सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में स्तूप नहीं मिला है बल्कि स्तूप की खुदाई में सिंधु घाटी की सभ्यता मिली है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में विशाल स्नानागार मिला है। स्नानागार के आँगन में जलाशय है। जलाशय के तीन ओर बरामदे और उनके पीछे कई कमरे थे। इतिहासकार मैके ने बताया है कि कमरेवाला स्नानागार पुरोहितों के लिए था, जबकि विशाल स्नानागार सामान्य जनता के लिए था तथा इसका उपयोग धार्मिक समारोहों के अवसर पर किया जाता था।

डी. डी. कोसंबी ने लिखा है कि पूरे ऐतिहासिक युग में ऐसे कृत्रिम ताल बनाए गए हैं : पहले स्वतंत्र रूप में , बाद में मंदिरों के समीप। सवाल उठता है कि सिंधु घाटी के लोग विशेष धार्मिक अवसरों पर विशाल स्नानागार में पुरोहितों के संग स्नान तथा शुद्धिकरण करके कहाँ जाते थे ? मंदिर तो था नहीं। वहीं स्तूप में ! स्नानागार के बगल के स्तूप में !!

उत्तरी बिहार के वैशाली में पुरातत्वविदों ने आनंद स्तूप के बगल में ठीक ऐसा ही विशाल स्नानागार खोज निकाला है , जैसा कि मोहनजोदड़ो में है। 1826 में मैसन ने पहली बार हड़प्पा में स्तूप ही देखा था , बर्नेस ( 1831 ) और कनिंघम ( 1853 ) ने भी। सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई बाद में हुई। राखालदास बंदोपाध्याय ने भी 1922 में मोहनजोदड़ो के बौद्ध स्तूप की खुदाई में ही सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज की थी । राखीगढ़ तो हाल की घटना है , वहाँ भी सिंधु घाटी की सभ्यता स्तूप की खुदाई में ही मिली है - सिंधु घाटी सभ्यता का विशाल स्थल !

इसलिए ; सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में स्तूप नहीं मिला है बल्कि स्तूप की खुदाई में सिंधु घाटी की सभ्यता मिली है । मगर इतिहासकारों को सिंधु घाटी की सभ्यता के इतिहास को ऐसे लिखने में जाने क्या परेशानी है , जबकि सच यही है । मोहनजोदड़ो के जिस विशाल स्नानागार को मार्शल ने विश्व का एक '' आश्चर्यजनक निर्माण '' बताया है , ठीक उसी के सटे है मोहनजोदड़ो का विशाल स्तूप । विशाल स्तूप की ईंटें तथा अन्य इमारती सामान वहीं हैं जो विशाल स्नानागार के हैं । स्तूप का वास्तुशिल्प , प्रारूप , अभिकल्पन - सभी कुछ वही है जो हड़प्पाकाल में प्रचलित था ।

विशाल स्तूप में मिले बर्तन , बर्तन पर की गई चित्रकारी - सभी पर हड़प्पाकाल की छाप है । यदि विशाल स्नानागार हड़प्पाकालीन है तो विशाल स्तूप हड़प्पाकालीन क्यों नहीं है ? ठीक स्नानागार के तल पर है स्तूप , ऊपर नहीं । स्तूप के नीचे नहीं है किसी अन्य सभ्यता की मौजूदगी के निशान । स्तूप पर 6 वीं सदी ईसा पूर्व के बाद का न कोई कला - शिल्प , न शिल्प - लेख । फिर भी इतिहासकार जाने कैसे बता गए हैं कि मोहनजोदड़ो का स्तूप 6 वीं सदी ईसा पूर्व के बाद का है । दरअसल इतिहासकारों के दिमाग में यह भूत पहले से बैठा हुआ है कि स्तूप जब भी बनेगा , 6 वीं सदी ईसा पूर्व के बाद ही बनेगा । इस भूत को निकाल फेंकिए , तभी इतिहास के साथ न्याय होगा ।

मोहनजोदड़ो के जलकुंड में उतरने के लिए सीढ़ियाँ हैं और उनके पीछे कमरे बने थे।वाराणसी के जलकुंड में भी उतरने के लिए सीढ़ियाँ हैं और उनके पीछे कमरे बने हैं। जैसे मोहनजोदड़ो के जलकुंड में स्नान कर लोग बौद्ध- स्तूप जाया करते थे , वैसे ही वाराणसी के जलकुंड में भी स्नान कर लोग दुर्गा - मंदिर जाया करते हैं पहला बौद्ध सभ्यता का प्रतीक है , दूसरा ब्राह्मण सभ्यता का प्रतीक है। कोई शक नहीं कि सिंधु घाटी की सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी । इतिहासकार मोहनजोदड़ो के जलकुंड और बौद्ध - स्तूप का समय अलग - अलग तय करते हैं । वे जलकुंड ( स्नानागार ) को तो हड़प्पाकालीन मानते हैं , मगर बौद्ध - स्तूप को छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बाद का बताते हैं । भाई , जलकुंड और बौद्ध - स्तूप एक - दूसरे से जुड़ा हुआ है , दोनों जुड़वाँ हैं , इन्हें अलग - अलग नहीं किया जा सकता है ।
-डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह


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