“राह में कई कश्तियां और सहारे मिले लेकिन मंज़िल जिसकी खबर मुझे भी न थी और जिसका अंदाज़ा मेरे परिवार या दोस्तों को भी न था वह खुद मुझे अपनी और लेती चली गई। आज जहाँ मैं खड़ा हूँ जिस राह पर मैं अल्लाह का हाथ थामे आगे बढ़ रहा हूँ उस राह पर चलने में जो सुकून है उस सुकून ने मेरे जीने का नजरिया ही बदल दिया। शायद इस नज़रिए को मई कभी न समझ पाता अगर किसी मुस्लिम ने अपने घर में रहने के लिए मुझे जगह न दी होती“–
यह कहना है 4 साल की लम्बी छुट्टी में 60 मुल्क घूमने वाले माइकल रूपर्ट का जो इन चार सालों में सारी दुनिया घूम कर लोगों उनके मजहबों को जान कर ज़िन्दगी जी लेने की खवाईश से घर से निकला था।
जर्मनी में पले-बढ़े इस 29 साल के लड़के माइकल रूपर्ट की ज़िन्दगी का सपना था की वो पूरी दुनिया घूमे इसी सपने को आँखों में बसा रूपर्ट दुनिया की सैर पर निकल पड़ा जिस दौरान वह तुर्की, इंडोनेशिया, अल्बानिया और मलेशिया समेत कई देशों में गया, वहां के रीती-रिवाज़ों, धर्म और मान्यताओं को समझा और वहां के लोगों को जाना। अपने इसी सफर के बीच जो चीज़ उसने दुनिया के हर कोने में देखी और जो उसने महसूस किया वो था इस्लाम।
ख़ुशी से ज़िन्दगी बिताते, कुरान पढ़ते, नमाज़ अदा करते लोगों ने माइकल का ध्यान अपनी तरफ खूब खींचा। इसी दौरान अपनी यात्रा के दौरान मलेशिया पहुंचे माइकल को एक मुस्लिम परिवार में रहने का मौक़ा मिला जिससे उसे इस्लाम को करीब से जानने और समझने का मौका मिला।
इस्लाम की और बढ़ते अपने शुरूआती क़दमों के बारे में बयान करते हुए माइकल ने बताया: ” मुझे नहीं पता मैं कब इस्लाम की राह पर निकल चला, बस इतना कह सकता हूँ कि जैसे जैसे मैं इस्लाम को जानता गया वैसे-वैसे मेरे मन को वो सुकून मिलता गया जो पहले कभी नहीं मिला था इसी सुकून और न ब्यान किए जा सकने वाली अंदरूनी ख़ुशी ने मुझे इस्लाम की रह पर चला दिया। “ (खबर डेली से)