मध्यप्रदेश में साल 2002 के घोषणा-पत्र के तहत दलितों-आदिवासियों की 7 लाख एकड़ ज़मीन के आवंटन में घोटाले का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। भू-अधिकार अभियान की ओर से जनहित याचिका दायर की गई है।
अधिवक्ता राघवेंद्र कुमार ने बताया कि, भू-अधिकार जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव और एससी-एसटी विभाग के प्रमुख सचिव के खिलाफ नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अपने दलित एजेंडे के तहत साल 2002 में भोपाल घोषणा पत्र जारी किया था। जिसके तहत प्रदेश के करीब 3 लाख दलित-आदिवासी परिवारों को 7 लाख एकड़ ज़मीन के पट्टे देना बताया गया और इसके लिए 37 करोड़ रुपए भी खर्च किए गए।
याचिका में कहा गया है कि इतने बड़े भूमि आवंटन की सही-सही जानकारी और रिकॉर्ड ना तो जिलों में है और ना ही राज्य स्तर पर मिले हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसे भी कई दलित आदिवासी परिवार मौजूद हैं जिनके नाम पर पट्टे तो जारी कर दिए गए, लेकिन उन्हें ज़मीन का कब्जा ही नहीं मिला और जिन्हें ज़मीन मिली, उनके पास भी सीमांकन के दस्तावेज नहीं हैं।
ऐसे में इस याचिका में भूमि आवंटन में अनियमितता और घोटाले का आरोप लगाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि भोपाल घोषणा पत्र के तहत हुए भूमि आवंटन की पूरी जानकारी सार्वजनिक की जाए और असली हितग्राहियों तक भूमि आवंटन का लाभ पहुंचाया जाए। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव सहित एससी-एसटी विभाग के प्रमुख सचिव से जवाब मांगा है। मामले पर अगली सुनवाई 5 मई को की जाएगी। (भोपाल समाचार से साभार)